गुरु रविदास जी का जीवन परिचय, रविदास जयंती 2022 || Guru Ravidas Biography, Guru Ravidas jayanti in 2022

संत रविदास जी की जीवनी, संत रविदास जी की जयंती कब है, 

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गुरु रविदास जी 15 वी 16 वी शताब्दी में एक दार्शनिक महान संत और समाज सुधारक हुआ करते थे इनको भारत में भगवान के अनुयाई भी कहा जाता था 

जिन्होंने भारत के उत्तरी क्षेत्र में भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा अपने ज्ञान के द्वारा समाज एवं देश के लोगों को धार्मिक अथवा धर्म के प्रति जागरुक किया 

इस लेख के अंदर हम “गुरु रविदास जी का जीवन परिचय” बताएंगे गुरु रविदास जी ऐसे संत थे उनके अंदर प्रेम की भावना साफ दिखाई देती थी और भगवान के प्रति भी उनका प्रेम एकदम सच्चा था मैं दूसरे लोगों को भी परमेश्वर से प्रेम करने के लिए जागरूक किया करते थे और जो आप लोग थे 

वो उन्हें अपना मसीहा मानते थे क्योंकि वह एक ऐसे संत थे जिन्होंने आध्यात्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत बड़े-बड़े काम किए थे और बहुत से लोग ऐसे थे जो इनको भगवान का दर्जा देते थे इनको भगवान की तरह पूजते थे

आज भी लोग गुरु रविदास जी के वचनों को और गानों को उनके जन्मदिवस पर सुनते हैं गुरु रविदास जी महाराष्ट्र, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय थे और हैं।

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय।

(Guru Ravidas biography)

क्रमांक जीवन परिचय बिंदु रविदास जी जीवन परिचय
1. पूरा नाम गुरु रविदास जी
2. अन्य नाम रैदास, रोहिदास, रूहिदास
3. जन्म 1377 AD
4. जन्म स्थान वाराणसी, उत्तरप्रदेश
5. पिता का नाम श्री संतोख दास जी
6. माता का नाम श्रीमती कलसा देवी की
7. दादा का नाम श्री कालू राम जी
8. दादी का नाम श्रीमती लखपति जी
9. पत्नी श्रीमती लोना जी
10. बेटा विजय दास जी
11. मृत्यु 1540 AD (वाराणसी)

गुरु रविदास जी का जन्म गोवर्धन गांव में हुआ था जो कि वाराणसी के पास है इनके पिता का नाम संतोष दास जी था और इनकी माता का नाम कलसा देवी था रविदास जी के जन्म को लेकर सब लोग अपने अलग-अलग राय देते हैं जो कुछ विद्वान हैं उन्होंने रविदास जी का जन्म 1376-77 मैं बताया है 

और कुछ विद्वानों का कहना है कि गुरु रविदास जी का जन्म 1399 CE मैं हुआ था और दस्तावेज यह बताते हैं कि गुरु रविदास जी का जन्म 1450 से लेकर 1520 के बीच हुआ था रविदास जी के जन्म स्थान को “श्री गुरु रविदास जन्म स्थान” कहा जाता है

जो गुरु रविदास जी के पिता थे वह राजा के नगर के सरपंच हुआ करते थे और उनका जूतों को सुधारने और बनाने का काम था जो रविदास जी के पिता थे वह मरे हुए जानवरों की खाल निकाल कर उनसे चमड़ा बनाते थे और फिर उनसे चप्पल जूते बनाते थे।

संत रविदास जी बचपन में बहुत बहादुर हुआ करते थे और मैं भगवान जी को भी बहुत मानते थे जो संत रविदास जी थे उनको बचपन से ही जो उच्च जाति के लोग थे उनसे हीन भावना का शिकार होना पड़ता था मैं लोग हमेशा रविदास जी के मन में इनके उच्च कुल मैं ना होने के बात डाला करते थे 

फिर रविदास जी ने समाज के तौर-तरीके बदलने के लिए कलम का सहारा लिया मैं अपनी कलाओं के द्वारा अपनी रचनाओं के द्वारा लोगों को जीवन के तौर तरीके समझाए करते थे और मैं सबको शिक्षा दिया करते थे कि सब को एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना चाहिए मिल जुल कर रहना चाहिए किसी से हीन भावना नहीं रखनी चाहिए।

रविदास जी की शिक्षा।

(Guru Ravidas education)

संत रविदास जी बचपन में शारदानंद जी की पाठशाला में जाया करते थे जो कि एक ग्रुप पंडित थे मैं उनसे पाठशाला में शिक्षा लेने जाया करते थे और फिर कुछ समय के बाद जो ऊंची जाति के लोग थे उन्होंने उनका पाठशाला में भी आना बंद करवा दिया था 

जो पंडित शारदानंद थे उन्होंने संत रविदास जी की प्रतिभा को भलीभांति जान लिया था मैं समाज के ऊंचे नीचे जात पात को नहीं मानते थे वे मानते थे कि रविदास जी भगवान का स्वरूप है यह भगवान का भेजा हुआ बालक है 

जिसके बाद फिर से शारदा नंद जी ने रविदास जी को अपनी पाठशाला में शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया संत रविदास जी एक बहुत ही होशियार प्रतिभाशाली होनहार बालक थे जितना गुरुजी रविदास जी को पढ़ाया करते थे वे उनसे ज्यादा समझ लिया करते थे 

और ज्यादा से ज्यादा शिक्षा ग्रहण करते थे और जब पंडित शारदानंद जी से वह संत रविदास जी से बहुत प्रभावित रहा करते थे मैं सोचते थे कि रविदास जी 1 दिन समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु बनेंगे।

और संत रविदास जी के साथ पाठशाला के अंदर पंडित सदानंद जी का बेटा भी पढ़ता था और मैं दोनों एक बहुत ही अच्छे मित्र भी थे 1 दिन की बात है मैं एक बार छुपन छुपाई खेल रहे थे फिर खेलते खेलते कुछ समय के बाद रात हो गई फिर उन दोनों ने आपस मे खेलने का एक दूसरे के समक्ष प्रस्ताव रखा। 

सुबह को रविदास जी समय पर खेलने के लिए पहुंच गए लेकिन जो उनका मित्र था वह नहीं आया था इस संत रविदास जी अपने मित्र के घर जाते हैं फिर वहां जाकर मैं बहुत दुखी होते हैं उनको पता चलता है कि उनके मित्र की रात ही मृत्यु हो गई वह इतना देखने के बाद रविदास जी एकदम सुन पड़ गए 

फिर जो उनके गुरु पंडित सदानंद जी थे वे रविदास जी को उनके मित्र मित्र के पास लेकर गए जो रविदास जी थे उनको बचपन में ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई थी और फिर चमत्कार हो गया जब संत रविदास जी ने अपने मित्र के पास जाकर कहा कि यह सोने का समय नहीं है चलो मित्र खेलते हैं इतना सुनते ही उनका मित्र खड़ा हो गया यह देखकर वहां पर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए।

गुरु रविदास जी का आगे का जीवन।

(Guru Ravidas life)

संत रविदास जी जैसे जैसे अपने जीवन काल में आगे बढ़ते चले गए जैसे जैसे मैं बड़े होते गए वैसे ही श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती चली गई हमेशा हरि कृष्ण, राजा रामचंद्र, राम, रघुनाथ जैसे शब्द का उपयोग किया करते थे जिनसे उनका धार्मिक होना दिखता था

जो संत रविदास जीत है वह मीराबाई के धार्मिक गुरु भी हुआ करते थे जो मीराबाई थी वह चित्तौड़ की रानी थी और राजस्थान के राजा की पुत्री थी और मैं रविदास जी की शिक्षा से बहुत प्रभावित हुआ करती थी और भी उनकी एक बहुत बड़ी अनुयाई भी बन गई थी 

और मेरा भाई जी ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पंक्तियां भी लिखी थी जैसे कि – “गुरु मिलाया रविदास जी” जब मीरा बाई थी मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी 

इनकी माता का देहांत बचपन में ही हो गया था इसके बाद इनको इनके दादा जी ने संभाला इनके दादा जी का नाम दुदा जी था दुदा संत रविदास जी के बहुत अच्छे अनुयाई थे मीरा बाई हमेशा अपने दादाजी के साथ रविदास जी से मिलती रहती थी 

और फिर मीराबाई की शादी हो गई और शादी के बाद अपने परिवार की रजामंदी से उन्होंने श्री गुरु रविदास जी को अपना ग्रुप बना लिया था।

मीराबाई ने अपनी पंक्तियों में कई बार ऐसे लिखा कि उनको मृत्यु से कई बार गुरु रविदास जी ने बचाया था।

रविदास जी के सामाजिक काम।

(Guru Ravidas society works)

वहां के लोगों का यह मानना था कि भगवान ने धर्म की रक्षा करने के लिए रविदास जी को धरती पर भेजा है क्योंकि जब रविदास जी का जन्म हुआ था उस समय आप बहुत ज्यादा बढ़ चुका था लोग जातिवाद करने लगे थे धर्म के नाम पर उल्टा सीधा बोलने लगे थे भेदभाव करने लगे थे 

इसी चीज को देखते हुए रविदास जी ने लोगों को प्रेम की परिभाषा समझाइए उनको विश्वास दिलाया और उनको जातिवाद से मुक्त कराने की ठान ली मैं लोगों को कुछ इस तरह समझाते थे कि इंसान भगवान , धर्म और जाति पर विश्वास के द्वारा नहीं जाना जाता है 

बल्कि वह जाना जाता है तो अपने कर्मों के द्वारा। रविदास जी ने निष्पक्ष होकर समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को खत्म करने के लिए बहुत प्रयास किए थे यह उस समय की बात है जब नीची जाति वालों को बहुत दुत्कारा आ जाता था 

उन लोगों को मंदिर में जाना भी मना था स्कूल में पढ़ना लिखना भी मना था और दिन में घर से बाहर निकलना भी बिल्कुल मना था गांव में रहने के लिए भी कच्चे झोपड़े बनाने पड़ते थे मैं एक मजदूर की बात ही रहा करते थे उनको जो पढ़ो में रहने के लिए मजबूर किया जाता था 

मतलब उनके ऊपर सभी अन्याय होते थे यह दुर्दशा देखकर श्री रविदास जी ने समाज में फैले इस छुआछूत की बीमारी को छुआछूत के भेदभाव को दूर करने की ठान ली थी और फिर लोगों को अच्छी बातें और अच्छे रास्ते पर चलने की सीख देने लगे थे।

रविदास जी लोगों कुछ इस तरह का संदेश दे देते थे की भगवान ने इंसान को बनाया है ना कि इंसान ने भगवान को इसलिए इस धरती पर सभी को सामान हक और सामान सम्मान मिलना चाहिए और सम्मान हर व्यक्ति का अधिकार है और हमेशा भाईचारे से मिलजुल कर एक दूसरे के साथ रहना चाहिए कोई हीन भावना नहीं रखनी चाहिए वह इस तरह की शिक्षा लोगों को दिया करते थे।

जो संत रविदास जी के द्वारा लिखे गए पाद, और धार्मिक गाने एवं उनकी रचनाएं थी उनको सिख शास्त्र “गुरु गोविंद ग्रंथ साहिब” में शामिल भी किया गया है  जो पांचवे सिख गुरु थे जिनका नाम था “अर्जन देव” उन्होंने इसको ग्रंथ में शामिल किया था रविदास जी की शिक्षा के अनुयाई थे उनको रविदास्सिया कहां जाता था और उनके उपदेशों के संग्रह को भी रविदास्सिया पंथ बोला जाता था।

रविदास जी का स्वभाव कैसा था।

(Guru Ravidas behaviour/nature)

श्री संत रविदास जी को उनकी जाति के लोग थे में भी उनको आगे बढ़ने से रोका करते थे जो शुद्र लोग थे वह रविदास जी को ब्राह्मण के जैसे कपड़े योजनाओं पहनने और तिलक लगाने से रोकते थे और जो संत रविदास जी थे वह इन सब बातों का खंडन करते थे 

और भी यह कहा करते थे कि सभी इंसान को इस धरती पर सामान दर्जा मिला है सभी को अपने मनमर्जी के मुताबिक करने का अधिकार है जिसकी जो मर्जी आती है वह कर सकता है फिर जो भी चीज नीची जाति वालों के लिए मना थी 

उन्होंने वह सब करना शुरू कर दिया जैसे की धोती पहनना जनेऊ डालना तिलक लगाना इत्यादि और जो ब्राह्मण लोग थे वह इस सब के बेहद खिलाफ थे और उन लोगों ने जो वहां के राजा हुआ करते थे उनसे संत रविदास जी के इस बर्ताव को लेकर शिकायत कर दी 

संत रविदास जी ने इस सब का ब्राह्मण लोगों को बड़े ही प्यार से जवाब दिया उन्होंने राजा के सामने यह कहा कि शूद्र इंसान के पास भी सभी अधिकार हैं ब्राह्मण का खून भी लाल है और शुद्ध इंसान का खून भी लाल हैं बातों की तरह सुधीर का भी सामान अधिकार है 

फिर रविदास जी ने बड़ी सभा के अंदर अपना सीना चीर दिया और चारों युगों सचिव द्वापर युग त्रेता युग और कलियुग की तरह चारों युगों की तरह तांबा कपास सोना चांदी से जनेऊ बनवा डाला और राजा के साथ-साथ जो लोग वहां पर मौजूद थे 

वह सभी आश्चर्यचकित रह गए उनके पैर छुए और उनको गुरु के सामान दर्जा दिया और राजा को भी अपनी इस बचकानी हरकत पर बहुत शर्मिंदा होना पड़ा फिर उन्होंने गुरु रविदास जी से माफी मांगी फिर गुरु रविदास जी ने उनको बड़ी सहायता से माफ कर दिया और फिर उन्होंने कहा कि यह जनेऊ पहनने से भगवान नहीं मिल सकती 

फिर उन्होंने कहा कि आप सभी लोगों को सच्चाई दिखाने के लिए और वास्तविकता दिखाने के लिए इस गतिविधि में शामिल किया गया है फिर उन्होंने अपना जन्म उतारा और राजा को दे दिया फिर उसके बाद उन्होंने कभी भी ना तिलक लगाया और ना जनेऊ धारण किया।

रविदास जी के पिता की मृत्यु।

(Guru Ravidas father death)

जब गुरु रविदास जी के पिता की मृत्यु हुई तब उन्होंने अपने आस-पड़ोस से मदद मांगी ताकि मैं अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए गंगा तट पर जा सके और जो ब्राह्मण लोग थे वह सब इसके खिलाफ थे क्योंकि वह सब गंगा जी में स्नान किया करते थे

वो सोचते थे कि अगर शुद्र का अंतिम संस्कार वहां हुआ तो गंगा जी अपवित्र हो जाएंगी वह समय ऐसा था उस समय गुरु रविदास जी बहुत ऐसा है और दुख महसूस कर रहे थे। उन्होंने अपना संयम ना तोड़ते हुए भगवान जी से अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे 

फिर देखते ही देखते वहां पर एक बड़ा सा तूफान आ गया और नदी का जो पानी था वह उल्टी दिशा में बहने लगा और फिर पानी की एक बड़ी सी लहर मृत शव के पास आई और सभी अवशेषों को बहाकर ले गई तभी से गंगा विपरीत दिशा में बहती आ रही है।

रविदास और मुगल शासक बाबर।

(Ravidas and mugal ruler Babar)

जब बाबर था वह मुगल साम्राज्य का पहला शासक था भारत के इतिहास के अनुसार यही बताया गया है जिसने पानीपत की लड़ाई जीतकर अंतर्गत 26 मई दिल्ली पर कब्जा कर लिया था 

और वह गुरु रविदास जी की आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में अच्छी तरह से जानता था और वह उनसे मिलना भी चाहता था और फिर हुमायूं के साथ बाबर उनसे मिलने गया 

और फिर उसने गुरु रविदास जी के पैर छुए और उनको सम्मान दिया और फिर गुरु जी ने उनको आशीर्वाद देने की जगह उन को दंडित किया उन्होंने उसको दंडित इसलिए किया 

क्योंकि उसने बहुत सारे लोगों का खून बहा था उसने बहुत सारे लोगों को मारा था फिर गुरुजी ने बाबर को बहुत ही गहराई से शिक्षा दी जिससे बाबर बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और में गुरु रविदास जी के अनुयाई बन गए और फिर मैं अच्छे सामाजिक कार्यों में अपना ध्यान लगाने लगे।

रविदास जी की मृत्यु।

(Guru Ravidas death)

संत रविदास जी की मानवता और भगवान के प्रति श्रद्धा और सच्चाई को देखकर दिन प्रतिदिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे और वहीं दूसरी तरफ जो कुछ ब्राह्मण थे वे उन को मारने की साजिश भी कर रहे थे जो गुरु रविदास जी के विरोधक थे 

उन्होंने एक सभा का आयोजन किया और उन्होंने वह सभा गांव से बहुत दूर आयोजित की जिसमें गुरु रविदास जी को भी आमंत्रित किया गया लेकिन गुरु रविदास जी उनकी इस चाल से भलीभांति अवगत थे फिर गुरुजी वहां पहुंचे 

और वहां जाकर उन्होंने सभा का शुभारंभ किया फिर गलती से वहां पर गुरु रविदास जी के जगह उनका साथी बल्ला नाथ वह मारा गया फिर गुरुजी ने थोड़ी देर के बाद अपने कक्ष में जाकर शंख बजाया फिर सब यह देखकर अचंभित हो गए और फिर अपने मित्र को मरे हुए देखकर मैं बहुत दुखी हुए हो और फिर दुखी मन से में गुरुजी के पास गए।

कुछ विद्वानों का मानना है कि गुरु रविदास जी ने अपने शरीर का त्याग 120 या 126 वर्ष किया था कुछ लोगों के अनुसार 1540 AD मैं उन्होंने वाराणसी के अंदर अंतिम सांस ली।

गुरु रविदास जयंती 2022 में कब है

(Guru Ravidas jayanti in 2022)

जो रविदास जयंती है वह माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जो रविदास्सिया समुदाय के लोग हैं वह इस दिन को बड़े ही उत्साह से मनाते हैं और वाराणसी के अंदर जो इनका जन्म स्थान है जिसका नाम है “श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान” वहां पर एक बहुत ही विशेष कार्यक्रम का आयोजन होता है जहां पर लाखों की संख्या में लोग मौजूद होते हैं जो कि रविदास जी के भक्त होते हैं

इस साल रविदास जयंती 16 फरवरी 2022 को मनाई जाएगी यह उनका 643 व जन्मदिन होगा। 

और जो सिख समुदाय हैं उनके द्वारा नगर के अलग-अलग स्थान पर कीर्तन का आयोजन किया जाता है और साथ ही साथ एक स्पेशल आरती भी की जाती है और मंदिरों के अंदर गुरुद्वारों के अंदर रविदास जी के दोहे और उनके गाने भी बजाए जाते हैं 

और जो उनके अनुयाई हैं वह इस दिन को बहुत पवित्र मानते हैं और पवित्र नदी में स्नान भी करते हैं और फिर मैं रविदास जी की प्रतिमा या उनकी फोटो की पूजा भी करते हैं

रविदास जयंती मनाने का सिर्फ यही उद्देश्य है कि गुरु रविदास जी को याद किया जा सके उनकी शिक्षा को उनके बलिदान को उनके इतिहास को याद किया जा सके जिन्होंने भाईचारे की नीव समाज में रखी थी उसको याद किया जाए और दुनिया वाले एक बार फिर से भाईचारे बनाकर रहने लगे।

रविदास स्मारक।

(Ravidas Memorial)

गुरु रविदास जी की याद में वाराणसी के अंदर बहुत सारे स्मारक बनाए गए हैं जैसे कि रविदास मेमोरियल गेट, रविदास नगर, रविदास घाट, रविदास पार्क इत्यादि।

निष्कर्ष।

इस लेख के अंदर हमने “गुरु रविदास जी का जीवन परिचय” का संपूर्ण वर्णन किया है उम्मीद करता हूं आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी से कुछ सीखने को मिला होगा अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और अपने मित्र अपने रिलेटिव्स के पास ज्यादा से ज्यादा इसको शेयर करें और जैसे संत रविदास जी कहते थे भाईचारा हमेशा बनाकर रखें जात पात जाति धर्म के नाम पर खिलवाड़ ना करें इन सभी बातों का भली-भांति स्मरण रखें।

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